सत्यनगर में भारत के किसी अन्य शहर कि तरह ही त्योहार खूब ज़ोर शोर से मनाये जा रहे थे । शहर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी नवदुर्गा उत्सव के तत्पश्चात ही रावण दहन के समारोह का आयोजन किया गया । अभी तक जितने भी रावण दहन समारोह हुए थे उसमें कार्यक्रम कुछ इस प्रकार होता था कि शाम से ही नन्हे बालक रामलीला का मंचन करते थे। सबसे नन्हे बालको को राम और लक्ष्मण और किशोरों को उनकी सेना का वेश धारण करा के रथ यात्रा निकाली जाती जो पूरे शहर के मुख्य मार्गो का भ्रमण कर के रावण दहन स्थल पे पहुंचती । उस ही स्थल पर बालकों से पंद्रह बीस वर्ष अधिक आयु के युवक, या प्रौढ़ आयु के पुरुष रावण व उसकी सेना का किरदार निभाते हुए राम सेना के आक्रमण की प्रतीक्षा करते । राम का रथ आते ही रामलीला के लंका काण्ड का मंचन होता और उसके पश्चात मुख्य अतिथि महोदय रावण के पुतले को अग्नि बाण से मार कर दहन कर देते ।
काल कालान्तर से मुख्य अतिथि की भूमिका माननीय विधायक जी निभा रहे थे, पिछले वर्ष तक तो यही होता आ रहा था पर इस बार स्थिति थोड़ी अलग थी । विधायक जी पर कुछ समय से एक मुकदमा चल रहा था जो पंचमी को सिद्ध भी हो गया और कोर्ट से विधायक जी सीधा कारागार में जा पहुंचे थे । कोई छोटा मोटा इल्ज़ाम होता तो विधायक जी पैरोल पे बाहर आ के रावण मार के फिर अंदर चले जाते पर यह मुक़द्दमा भी गंभीर था, रेप और उसके बाद कत्ल । सत्यनगर की जनता ऐसे व्यक्ति के हाथ से रावण का वध करा के रावण के साथ अन्याय करना नही चाहती थी । आयोजक समिति के पास दूसरा मुख्य अतिथि ढूंढने का ज़्यादा समय भी नहीं था, फिर भी कुछ कर्मठ सदस्यों ने कुछ नए सुझावों पे विचार करने की कोशिश की ।
मुख्य अतिथि के रूप में इस बार उदहारण स्थापित करना बहुत ज़रूरी था । समिति किसी भी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ के लाना नही चाहती थी जिसके चरित्र पे कोई दाग हो, पहले से ही विधायक जी के कर्मो के चलते उन्हें लोग ताना मार चुके थे कि चलो इस वर्ष तो कम से कम रावण ही रावण का वध नही करेगा ।
सुपात्र खोजने का अभियान शुरू हुआ, सबसे पहला विचार सत्यनगर के एक मात्र डॉक्टर साहब को मुख्य अतिथि बनाने का आया । डॉक्टर की छवि ही भगवान स्वरूप मानी जाती है समिति की मीटिंग हुई, तर्क रखा गया कि डॉक्टर साहब ने तो कितने ही नेक काम किये हैं , वो ही सुपात्र हैं । पर इस तर्क पे भी भारी प्रहार हुआ, डॉक्टर साहब का इतिहास कुछ खराब था, पता चला कि डॉक्टर साहब क्लिनिक में गैर कानूनी रूप से भ्रूण परीक्षण करते हैं , वे इस पवित्र कार्य के लिए सुपात्र बिल्कुल नहीं हो सकते ।
अभियान ने फिर तेज़ी पकड़ी, इंजीनियर साहब पे भी करोड़ो रूपये का घोटाला करने का मुकदमा दर्ज है, स्कूल में प्रिंसिपल बच्चो के मिड डे मील पे पैसा बना जाती हैं ये बात भी किसी से छुपी ना थी ।
एक पुतले को जलाने के लिए किसको चुना जाए ये मामला इतना गहरा जाएगा किसी ने सोचा भी ना था । मंदिर कद पंडित जी फूल वाले और मिठाई वाले के साथ मिल के मालाओ और प्रसाद की रीसाइक्लिंग करते थे, छोटे से नगर में लोग तो काफी थे पर कोई ऐसा नही मिल रहा था जो छवि का बिल्कुल सुथरा हो ।
इस ही विचार विमर्श में दशहरा आ गया पर किसी के नाम पर सहमति ना बन सकी । अंत में समिति ने सर्व सम्मति से फैसला लिया कि जो नन्हा बालक रामलीला के मंचन में प्रभु राम की भूमिका निभाता है, वही पुतले का दहन भी कर देगा । इस साल ऐसे ही कर लेते है अब अगले वर्ष का अगले वर्ष से देखा जाएगा ।
जैसा विचार किया था वैसा ही हुआ । रावण दहन का समय आया , नन्हे राम ने पहले तो रावण की भूमिका का मंचन करते उस आदमी का वध किया और फिर रावण के पुतले को अग्नि बाण मार कर भस्म किया । समिति की इस पहल को जनता ने बहुत सराहा । लोगो ने समिति की बहुत प्रशंसा की कि बड़ी ही गहरी सोच दिखाई है कार्यकर्ताओं ने । जय श्री राम जय श्री राम के उद्घोष से पूरा मैदान गूंज उठा । दर्शकों ने नन्हे राम को नगद पुरुस्कारों की घोषणा भी कर दी । सभी समिति वालों ने अपनी ही पीठ थपथपाई ।
मंच के पीछे नन्हा सा बालक भी बड़ा हर्ष महसूस कर रहा था । वह पहली बार पूरे नगर के सामने ये प्रस्तुति दी थी, और लोग उसके किरदार के नाम का उद्घोष भी कर रहे थे । उसने रावण का किरदार कर रहे उस प्रौढ़ के साथ अपनी खुशी बाँटते हुए कहा - " मेरा रावण को मारना सब को बहुत पसंद आया, अब तो मैं हर वर्ष राम बना करूँगा ।"
बालक के भोलेपन को देख रावण के चेहरे पे एक मंद मुस्कान आ गयी । उसने जवाब दिया - " हाँ, तुम्हारी उम्र में मैं भी यहां राम ही था । जब तक बन सको राम ही बनना"
बालक ने विस्मय से पूछा - " सच में आप भी पहले राम थे ? फिर अब आप रावण क्यों बन गए ?"
उसने जवाब दिया - "जब व्यक्ति बड़ा हो जाता है ना, तो फिर उसे लोग राम के रूप में स्वीकार नहीं करते । लोग उसे खुद ही रावण बना देते हैं ।"
बालक कुछ ज़्यादा समझा नहीं, शायद उसका ध्यान दर्शकों के समूह से आ रहे " जय श्री राम, जय श्री राम" के नारों कि ओर था, पर उसे इतना ज़रूर समझ में आगया था कि नारे लगाने वालों में कोई भी वयस्क ऐसा नही था जो खुद राम बनने लायक हो ।
- कुलदीप