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Wednesday, 31 December 2014

मौके की एहमियत

"पता नहीं कहाँ मर गया, बोल भी था उस हरामखोर से कि आज विशेष दिन है, वक़्त पे आए, कोना-कोना साफ़ होगा तभी तो सजावट में मज़ा आएगा । ये छोटे लोग क्या समझेंगे ऐसे मौको की एहमियत। यू.एस. में ही अच्छा था, सब काम तरीके से होता था, हर छोटा बड़ा इस दिन की तैयारी में लग जाता था, पर यहाँ इन छोटे लोगो की कामचोरी और चापलूसी ने बर्बाद कर रखा है सब कुछ।" अकेले कमरे में बैठे साहब खुद से ही बडबडाते हैं ।

इतने में ही दरवाज़े पे दस्तक होती है, खोलते सामने खड़ा एक छोटा व्यक्ति जिसका बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था। कुछ दस बारह बरस की उम्र रही होगी। रंग का साफ़ था पर धूल की परत ने उसकी कोमल काया को कुछ मटमैला सा कर दिया था। बाल धूप में पक कर रूखे हो गए थे और सर्दी की वजह से नाक से लगातार पानी रिस रहा था । डरा हुआ सहमा सा "मोनू" अपने साहब का चेहरा पढके ये जान चुका था कि उससे भारी गलती हो गयी है पर फिर भी एक बार वो अपनी देरी के लिए सफाई देने की कोशिश करता है।
" साहब, ज़ुकाम की दवा लेने अस्पताल गया था पर डॉक्टर साहब काफी देर से आये और जांचने पे बोले कि मुझे बुखार है और हाथ में नया परचा थमा दिया, नयी दवाई की लाइन में लगने से देर हो गयी साहब ।"
" साले इतना सा है और झूठ बड़ो से भी ज्यादा सफाई से बोलता है । और अगर सच भी बोल रहा है तो क्या तेरी दवाई एक दिन और रुक नहीं सकती थी, एक दिन में कौन सा मर जाता। पता है आज कितने बड़े बड़े लोग आने वाले हैं, चल अब काम कर जल्दी जल्दी ।" साहब डांटते हुए बोले।
पहले से ही डरा हुआ मोनू कुछ और सहम जाता है, पर कुछ ही क्षण में उसके साहब की डांट उसके बाल मन के विराट सागर में कहाँ घुल जाती है पता ही नहीं चलता ।

वैसे तो स्टेशन के बाहर बूट पोलिश का काम छोड़े और इस घर के काम को पकड़े तीन महीने हो चुके हैं  पर आज झाड़ू लगाते मोनू की आँखे मानो घर में कुछ खोज रही हैं । इससे पहले किसी और की तरह ही उसका घर भी उसका बाप चलाता था । वह पटाखों की फैक्ट्री में मजदूर था । आज से चार महीने पहले जब दिवाली की तैयारियां हो रही थी उसके बाप वाली फैक्ट्री में आग लग गयी । हादसे में मारे जाने वाले तीन मजदूरों में से एक उसका बाप भी था । बीस हज़ार रुपये का मुआवज़ा दिया था सरकार ने उसे भी, पर सरकारी बाबू कहते हैं कि उसका हक़ साबित करने के लिए उसके पास ज़रूरी कागज़ नहीं हैं । इतनी सरकारी चोचलेबाजी समझने के लिए मोनू अभी काफी छोटा था । मदद के लिए  उसके पास माँ का असरा भी नहीं था। उसका बाप कहता था कि वह उसको पैदा करने के कुछ महीने बाद ही उन्हें छोड़ कर बहुत दूर चली गयी थी। कितनी दूर गयी ये उसके बाप ने नहीं बताया था।

"झाड़ू पकड़ के खड़े रहने के पैसे नहीं मिलते हैं तुझे ।" एकाएक साहब की कर्कश आवाज़ मोनू को खयालों की दुनिया से बाहर ले आती है।
रोज़ाना की तरह, झाड़ू लगाने के बाद मोनू किचन के सामने ठन्डे फ़र्श पर बैठ जाता है।
"आज कोई चाय-नाश्ता नहीं मिलेगा। मैडम घर पर नहीं हैं आज ।"
मोनू का चेहरा काफी उदास हो उठता है । पर ये उदासी सिर्फ चाय न मिलने की नहीं है। दरअसल आज मैडम ने मोनू को गरम कपड़े देने का वादा किया था । जिन कपड़ो की उसे काफी समय से ज़रूरत थी क्यूंकि ठण्ड काफी दिनों से पड़ रही थी । वैसे तो कपडे भी मैडम ने एक महिना पहले ही निकाल के रख दिए थे पर उनको देने के लिए शायद आज का ही मुहूर्त तय था। वो अलग बात है कि अगर कपड़े पहले मिल जाते तो उसे शायद आज ज़ुकाम और बुखार न होता, पर क्या फर्क पड़ता है, कपड़े तो आज भी नहीं मिले । पोंछा लगाता मोनू कुछ हिम्मत जुटा के, सामने हाथो में जाम लिए अपने साहब से पूछता है, "मैडम कहाँ गयी साहब ? "
"वो अपने दोस्तों को बुलाने के लिए गयी है, शाम के लिए ।" जाम गटकते हुए साहब कहते हैं ।
"आज कुछ ख़ास है क्या साहब ?" मोनू फिर पूछता है ।
" आज न्यू इयर पार्टी है, चल ज़्यादा दिमाग नहीं खा अब मेरा, जल्दी से साफ़ कर।" दूसरा जाम भरते हुए साहब गुस्साते हैं ।
मोनू को पूरी बात तो समझ में नहीं आ पाई पर आधी ही समझ वो फिर अपने काम पर लग जाता है। नशे में धुत साहब से ज्यादा सवाल करना सही नहीं । अभी तीन हफ्ते पहले ही ठन्डे के जगह सादा पानी ला देने की वजह से बहुत मार पड़ी थी । साहब के कहे हिसाब से मोनू पूरा घर चमका देता है ।

मोनू मन ही मन खुद से बातें करता है, "आज कुछ तो ख़ास है । अरे हाँ, साहब के जन्मदिन पे भी तो यही सब हो रहा था । मैडम अपने दोस्तों को बुलाने गयी थी, घर की ख़ास सफाई हुई थी । आज शायद फिर से साहब का जन्मदिन है ।"
"साहब सारा काम कर दिया, मैं जाऊं ? "
" हाँ जा और शाम को आ जाना, काम रहेगा ।"
" ठीक है साहब । "
" और सुन नहा के ज़रूर आना । "
" जी साहब ।" ठण्ड में बुखार होने के बावजूद नहाने का सोचकर वह थोड़ा हल्की आवाज़ में बोलता है पर एक बात तो मोनू के मन में साफ़ हो गयी थी कि आज फिर से उसके साहब का जन्मदिन ही है । अब  ठण्ड हो, बुखार हो या कुछ भी हो नहाना तो उसे पड़ेगा । घर जाते हुए उसकी छोटी पर जिज्ञासु आँखें, रस्ते में पड़ने वाली दुकानों पर पड़ती हैं। सब का सब बिलकुल वैसा लग रहा है जैसे मानो दिवाली हो। पर दिवाली का और उसका तो बचपन का नाता है, वह इतना तो जनता है कि दिवाली इतनी जल्दी और इतनी ठण्ड में तो नहीं आती । एक बार फिर अपनी ही बनाई पहेलियों को सुलझाते हुए मोनू की आँखें सामने चमचमाती होटल के बिल्डिंग पर पड़ती है। यहीं तो उसका पड़ोसी, यासिर, गार्ड की नौकरी करता है । लगता है यहाँ भी कोई कार्यक्रम है । अपने सवालो का पिटारा लिए मोनू, यासिर के पास आ धमकता है।
"यासिर चाचा आज कोई त्यौहार है क्या ?"
"हाँ, आज न्यू इयर की रात है । अब जा मेरे बाप काम करने दे ।"
दिन में दूसरी बार कान में पड़ने के बाद "न्यू इयर" शब्द ने उसके दिमाग में अपनी छाप बना ली थी ।
" नू इयर, अच्छा, चाचा ये मुसलमानों का त्यौहार है क्या ?" मोनू थोडा रुक कर कहता है, "पर साहब तो हिन्दू ही है। "
" अरे सबका त्यौहार है। तू जाता है कि नहीं।" यासिर झिल्लाकर कहता है ।
अभी भी आधी ही बात समझ कर मोनू घर को चल देता है ।

हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में ज़ुकाम और बुखार से ग्रस्त मोनू अपने साहब के निर्देशानुसार नहा के साहब के घर को निकल पड़ता है । घर पहुँच के देखता है की दस पंद्रह लोग घर को दुल्हन की तरह सजा रहे होते हैं । अपने साहब को ढूँढता हुआ वह अपनी मैडम जी के पास पहुँच जाता है। मैडम बताती हैं कि जैसे मालिक के जन्मदिन पर सब मेहमानों को पानी परोसा था आज भी बिलकुल वैसे ही करना । मेहमानों का इंतज़ार करता मोनू एक कोने में बैठ जाता है । कुछ अँधेरा होते ही घर जगमगा उठता है और मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो उठता है। देखते ही देखते घर के बाहर बड़ी बड़ी गाडियों का जमघट लग जाता है । अमीर अमीर लोग और उनके चमकते दमकते बच्चे, जिनके सामने नन्हा सा मोनू किसी और ही देश का प्राणी लगता है, घर में प्रवेश करते हैं । मोनू के साहब उसे बुलाते हैं ।
" सुन वो जो बड़ा गुलदस्ता है, वो उन साहब को देना है ।"
" वो साहब जो चश्मा लगाये हैं ?"
" हाँ उन्ही को, और सुन गुलदस्ता देते वक़्त नमस्ते भी कहना। समझ गया ना ?"
" जी साहब ।"
मोनू एक आदर्श नौकर की तरह बिलकुल वैसे ही कर देता है जैसा उससे कहा गया होता है। कार्यक्रम चल पड़ता है । अपने हलके हाथों में भारी पानी के ग्लास से लदी हुई प्लेट लिए मोनू किचन से हॉल तक के कई चक्कर लगाता रहता है । एक और बार किचन से पानी भर के वापस हॉल में आता है तो देखता है कि सब बाहर बगीचे में आ गए हैं और गले मिल रहे हैं । इतनी देर से सब एक दुसरे के साथ थे तब तो सब सिर्फ हाथ मिला रहे थे, अचानक से गले मिलने का कारण भी मोनू के दिमाग से परे था ।
वह भी चोखट पे खड़ा हो यह सब देखने लगता है । सब एक दुसरे से "हैप्पी नू इयर - हैप्पी नू इयर " कह रहे हैं । बाहर आसमान भी रंगीन पटाखों से भर गया । बगीचे में भी साहब पटाखे चलाने लगते हैं । आकाश में जाती आतिशबाजी को देख सब बहुत खुश हो रहें हैं और वो चमकते दमकते बच्चे तो मानो झूम उठे हों । सबको पटाखों से खुश होता देख मोनू का मन भी प्रफुल्लित हो उठता है, और वह सोचता है कि बापू ने भी शायद इनमे से कोई न कोई पटाखे ज़रूर बनाये होंगे । बापू की मेहनत की वजह से आज कितने बड़े बड़े साहब लोग और उनके बच्चों के चेहरों पर ख़ुशी है। अपने बाप को याद करता हुआ मोनू अभी अपने आप को किसी शहीद के बेटे से कम नहीं समझ रहा था ।

"इधर आओ !", मैडम मोनू को सबके बीच बुलाती हैं ।
सारे मेहमानों की निगाहें मोनू पे टिक जाती हैं । मैडम आगे कहती हैं, "इस न्यू इयर पर हमे कुछ नया करना चाहिए । जैसे किसी गरीब कि मदद करनी चाहिए, उनकी ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए ।" मोनू की तरफ इशारा करते हुए वो कहती हैं, "इस लड़के का दुनिया में कोई नहीं है, ये बच्चा बहुत गरीब है, इसके पास ढंग के कपड़े तक नहीं हैं । इस न्यू इयर पे, अपने पहले नेक काम के तौर पर, मैं इसे दो कम्बल और तीन स्वेटर दान कर रही हूँ । आप सबको ये बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है।"
ये सुनते ही मोनू का चेहरा ख़ुशी से खिल उठता है। अब उसे समझ आता है कि दरसल कपड़े देने का समय ये था । पूरा बगीचा मैडम की तारीफें करता हुआ तालियों से गूँज उठता है । इतने में ही, जिस साहब को मोनू ने गुल्दास्ता भेंट किया था, वे भी फट से एक हज़ार रुपये का नोट निकाल मोनू को थमा कर कहते हैं, " बिलकुल ठीक कहा आपने मिसिज़ खन्ना, हम सबको ही ऐसे नेक काम करना चाहिए । मुझे ख़ुशी है कि हमारी सोसाइटी में आप जैसे मसीहा रहते हैं जो इन असहाय लोगों की परवाह करते हैं । सोसाइटी का प्रेजिडेंट होने के नाते, मैं आपको सोसिसटी का नया सेक्रेटरी नियुक्त करता हूँ ।" सुनते ही मोनू के साहब और मैडम इस कदर खुश हो जाते हैं कि मानो बहुत परिश्रम के बाद कोई खज़ाना हाथ लग गया हो । शायद लग भी गया हो पर मोनू के लिए तो निश्चित ही आज बहुत बड़ा खज़ाना उसके हाथ में था। उसका ध्यान उन साहब की बातों पे नहीं था और न ही अपने साहब और मैडम की बेहिसाब ख़ुशी पर था । वह तो बस अपने चहरे और अपने मुक़द्दर से भी बड़े उस नोट को निहार रहा था और मन ही मन प्रार्थना कर रहा था, " हे भगवान्, ये नू इयर हर थोड़े दिन में मनता रहे ।"

शायद मोनू के साहब सही थे, " ये छोटे लोग क्या समझेंगे ऐसे मौकों की एहमियत ।"

Monday, 18 August 2014

कृष्ण आश्चर्यचकित नहीं हैं ।

मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ , यद्यपि मेरे भक्तों के द्वारा गढ़ा ये संसार मेरे समक्ष अनेको विस्मय्पूर्ण प्रश्न लेकर खड़ा है , पर फिर भी, मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

सम्पूर्ण विश्व मेरा जन्मदिन अतिहर्ष व उत्साह के साथ मनाता है । ये विश्व मुझे सबसे बड़ा अध्यात्मिक गुरु भी मानता है, यह सोच कर मैं हमेशा इठलाता हूँ । इस कारण से ही मेरा अभिषेक मुझे चन्दन में लिपटा के, मुझे चांदी की चौकी पे विराजमान करके , स्वर्ण कलश एवं शंख से निर्मल पंचामृत प्रवाह करके करते हैं । वास्तविकता में तो मेरा जन्म अँधेरे कारागार की मलिन भूमी पर हुआ था, परन्तु ऐसे भव्य जन्मदिन का आनंद लेकर मैं प्रसन्न हो उठता हूँ । विडंबना यह है कि प्रतिवर्ष मेरी भव्य जन्माष्टमी का आयोजन करने वाले मेरे भक्तों के ही इस समाज में आज भी कुछ बाल-कृष्ण सामान्य व्यवस्था से वंचित होने के कारण, मलिन भूमि पर ही जन्म लेने के लिए मजबूर हैं । पर मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

मेरी बाल अवस्था में जब यमुना का जल कालिया ने दूषित कर दिया, तो मैंने उसे हराकर यमुना से दूर जाने पर विवश कर दिया व जीवनदायनी यमुना के जल को पुनः स्वच्छ किया । आज कालिया नहीं है परन्तु यमुना फिर दूषित है । दुविधा यह है कि दूषित करने वाला कोई और नहीं मेरे अपने प्रिय भक्त हैं । ये भक्त तो मेरे अपने हैं, मैं इन्हें तो यमुना से दूर जाने पर विवश नहीं कर सकता । मैंने सोचा था की जब कालिया की कथा का ये स्मरण करेंगे तो यमुना फिर कभी दूषित नहीं होने देंगे पर....
फिर भी मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

वृन्दावन के मेरे भोले ग्वाल अच्छी फसल की उपज के लिए अपने कर्म से अधिक देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने में परिश्रम करते थे । मैंने इस परंपरा का विरोध किया और अपने वृन्दावन वासियों को ज्ञात कराया कि कर्म ही पूजा है एवं किसी अदृश्य व प्राकृतिक शक्ति को प्रसन्न करने के स्थान पर अपने कर्म को ही धर्म मान कर उसमे परिश्रम करे तो फलस्वरूप उन्हें अधिक सफलता प्राप्त होगी । मेरे इस कृत्य से रुष्ट होकर देवराज इंद्र ने वृन्दावन पे अत्यधिक वर्षा की जिसके कारण मुझे गोवर्धन पर्वत उठाकर अपने वृन्दावन वासियों की रक्षा करनी पड़ी । आज भी मेरे भक्तों में यह कथा जीवित है...पर मेरे नवयुगी भक्त उससे शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाए और फिर से मैं आज उन्हें उस ही अज्ञानता के पथ पे चलता हुआ देख रहा हूँ । पर मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

मेरी युवावस्था का ज्ञान सभी को है, मेरी प्रेम लीला का भी । राधारानी के माध्यम से मैंने मनुष्य को प्रेम की पवित्रता, महानता व शक्ति का बोध कराया । आज भी मेरे भक्त मुझे राधा के साथ ही अपने पूजा के स्थानों में स्थापित करते हैं और ये प्रेम की ही शक्ति है की मेरे पूजन के लिए "राधा" नाम का जाप किया जाता है पर ऐसा लगता है कि मेरे भक्तो द्वारा किया जाने वाला ये प्रेम-गुणगान मात्र एक दिखावा है मुझे प्रसन्न करने के लिए । क्यूंकि मेरे भक्तो के ही इस समाज में , मिथ्य की प्रतिष्ठा के लिए, प्रेम रस में डूबे अनेको राधा-कृष्ण के जोड़ो का या तो बहिष्कार कर दिया जाता है या फिर उन्हें मार दिया जाता है । मेरे जीवन के सबसे दीर्घ व महत्वपूर्ण काल को मैंने प्रेम को समर्पित कर दिया फिर भी मेरे भक्त शायद नहीं जान पाए कि मैं उन्हें क्या समझाना चाहता था, परन्तु मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ।

मेरे भक्त मुझे द्वारकाधीश के रूप में भी पूजते हैं । द्वारकाधीश बनकर मुझे असीमित धन-धान्य एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई परन्तु जब मेरे बाल काल का सखा सुदामा मुझसे मिलने मेरे पास आया तो मैं उससे उस प्रकार ही मिला जैसा वर्षों पूर्व एक ग्वाल बाल के रूप में मिलता था । मेरी अपनी प्रजा यह देखकर चकित थी कि उनका धनाढ्य राजा एक गरीब ब्राह्मण के गले से लिपटा हुआ इतना प्रसन्न है । सुदामा के द्वारा मैंने मानव को ज्ञात कराया कि मित्रता सर्वोपरी है व धन या प्रतिष्ठा कभी भी मित्रता का आधार या बाधा नहीं होना चाहिए । मेरे भक्त मेरे इस कृत्य की जय-जयकार करते हैं परन्तु मुझे ज्ञात होता है कि मेरा यह परिश्रम भी व्यर्थ ही गया...आज तक मेरे नयन इस पृथ्वी पर दूसरे कृष्ण-सुदामा के जोड़े को ढूंढते है...इस खोज में मैं असफल हूँ पर आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

कुरुक्षेत्र की रणभूमी पर अर्जुन को मैंने गीता का ज्ञान दिया । आज मेरे अनेको भक्त श्रीमद भगवत गीता का अनुसरण करते हैं । उनके मंदिर की दीवारों पे गीता का सार लिखा हुआ देख मुझे संतोष होता है । पर जब मैं कुछ और गहराई से अपने भक्तो के अन्दर झांकता हूँ तो पाता हूँ की गीता की शिक्षा को मेरे भक्तो ने अपने मस्तिष्क में तो उतार लिया परन्तु अपने ह्रदय व अपनी आत्मा में उतारने में वे अभी भी असफल हैं ...आज भी वे स्वार्थ के बन्धनों से मुक्त न होने के कारण धर्म के पथ पर चलने में असमर्थ हैं।
पर मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

और भी अनेको ऐसे कारण हैं जिसके लिए मेरे भक्त मुझे पूजते हैं, मंदिरों में मेरे भजन करते हैं, मुझे विश्व अध्यात्म का सर्वोच्च गुरु मानता है। मेरे द्वारा दिया गया सारा ज्ञान उपलब्ध होने के पश्चात् भी अपने भीतर स्थापित कृष्ण को मेरे भक्त नहीं ढूंढ सके, पर मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ क्यूंकि ये समय , ये परिस्थितियां मैंने अपने सारे नौ अवतारों में देखी है । हर युग में मनुष्य एक देवता के रूप से प्रारंभ होके अज्ञानता व अन्धकार के पथ पर बढ़ने लगता है और युगांत तक पहुँचते पहुँचते मानवता - दानवता का रूप ले लेती है, और मुझे फिर जन्म लेना पड़ता है....एक नए युग को प्रारंभ करने के लिए....यही समय-चक्र है, और यही सृष्टि की नीति है । यही कारण है कि मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ ।

Saturday, 26 April 2014

10 Things you will miss after College

As College life has come to an end...here are a few things that I feel would be missed the most.

1.Bunks : Synonymous to college life for most of us this is the biggest difference between college and school/work. This is when we live some of the best moments of our life. On the cost of attendance, we happily enjoy doing nothing. What to do during the bunk..is decided after the bunk is on.

2.Proxy : As the oxford english dictionary says " The athourity to represent someone else. ". Excuse me...did you say athourity ?
The feeling of getting your proxy marked successfully is the same what you get when a distant guests hands you over a fat currency note. You dont earn it...but its yours. And also that is how you met one your closest buddy in the classroom. ..your proxy-mate...

3.Assignments : "Assign...what ?" . These are handwritten sheets of paper believed to get you marks.
How do we complete them ?
Copy them.
Where do we copy from ?
From another copied assignment.
Strange it may sound..but all the assignments we see floating in the class are copied...and the first original source file remains a mystery.
Handwriting is considered of no importance while copyin..err...making an assignment.
You need not to bother about what the questions were, you only need to be concerned about the answers/scribbled scriptures you are referring to.

4.The Canteen : This place is supposed to serve good food. and naturally it serves everything except " good food ". You dont plan to come to the canteen...when moving in group, your feet magically gets attracted to this place. Possibly because this is one of the sunlight-free , fan-installed spot where your presence won't offend any rule.
This is a soft target for people on bunk. You are served with gossips instead of food. Just like the "Guys/Girls" you will always find this more attractive in other colleges.
No matter how much you dislike it...or how oily the samosas are...you have visited this place like your classroom.

5.Your Alias : All have this one name by which everyone knows you...even the friend of friends who dont know your real name. It may be your last name..an abbreviation...or based on one of your traits...or something originated out of an unforgettable event. You get so used to this name that it feels strange to get called by your "official name" inside the campus premises. This is the name which'll keep on reverberating in your ears forever.

6.Party(yy) : College enlightened you about the fact that why Birthday celebration is also known as Birthday "Bash". You try every possible escape before the clock strikes 12' but your friends (in the disguise for that very day) are all prepared for the celebrations before your move...and the rest you can remember is a broken back and bottom of yours.
After this the next target is your wallet....which is choked till its last penny. Its all Christmas for your gang...and you play the Santa.
Though there seems nothing to be happy about but you celebrate your most amazing birthdays and achievements in the most amazing way.

7.The BPL phase : Beginning between the second to first week of the financial month...this is the time when your bank account is drained because of the luxurious hangout you had last weekend. You get a small refill from home on the name of project/books/random academic requirement...which ends up in a day or two and now your next big task is to survive the month with almost no money. You plan to cut short every possible expense and spend a week as a hippie..Plan fails and you borrow some from a slightly distant friend because the close ones are already in the same condition as yours and as soon as the month is over. You are the richest brat on the campus again.

8.Last Night Study : Since your performance last time was not up to the mark, you started making your strategy for this sem exams from the very day the exam datesheet came out. but sadly thats all you did till the day before exam. Now all you need to do is...buy local writer books, highlight the important topics and mug them up whole night. You follow the method of group study, even though it is unproductive but you can make sure that none of your friend is studying more than you.
This Last Night seems to be different from the usual nights...it is shorter...but not short enough to stop you from taking multiple Tea/Sutta/Maggi breaks.

9.The Exams : You wont be facing much of these in the coming life. One of the most hated events. The fear of sitting on the first bench of the row. The happiness of getting the exact question you studied...the sadness of getting the exact question you skipped. Loud Whispers while "being friendly" with your classmates. The difference between your handwriting on the first and last page of the answer sheet and the best feeling being submitting your last exam's answer sheet.

10.Random Hangouts : This is the colour you filled inside the outlines of your college life. Movies in the theatre or the downloaded ones on your laptop, Food at KFC or the parantha corner, Roaming aimlessly in the mall or within the campus...A planned holiday or just a small walk.... No matter whenever or wherever you made them...you enjoyed each and everyone of them and yes you are gonna miss these the most.

this blog would always be short to sum up the things we will miss....but on a Happy Note....what you won't miss in the future are your friends
...your gang...coz they are the earned gifts.... you have for life...